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GULJAR-EK NAZM





सामने आए मेरे देखा मुझे बात भी की 
मुस्कराए भी ,पुरानी किसी पहचान की खातिर 

कल का अखबार था ,बस देख लिया रख भी दिया 


आओ सारे पहन लें आईने 
सारे देखेंगे अपना ही चेहरा 

सबको सारे हंसी लगेंगे यहाँ !


उम्र के खेल में एक तरफ़ है ये रस्साकशी 
इक सिरा मुझ को दिया होता तो इक बात थी 

मुझसे तगड़ा भी है और सामने आता भी नहीं 


कुछ अफताब और उडे कायनात में 
मैं आसमान की जटाएं खोल रहा था 

वह तौलिये से गीले बाल छांट रही थी 


मैं रहता इस तरफ़ हूँ यार की दीवार के लेकिन 
मेरा साया अभी दीवार के उस पार गिरता है 

बड़ी कच्ची सरहद एक अपने जिस्मों -जां की है 



ऐसे बिखरे हैं दिन रात जैसे 
मोतियों वाला हार टूट गया 

तुमने मुझे पिरो के रखा था 


कोने वाली सीट पर अब दो कोई और ही बैठते हैं 
पिछले चंद महीनो से अब वो भी लड्ते रहते हैं 

कलर्क हैं दोनों, लगता है अब शादी करने वाले हैं 


इतने अरसे बादहेंगर "से कोट निकाला 
कितना लंबा बाल मिला है 'कॉलर "पर 

पिछले जाडो में पहना था ,याद आता है


नाप के वक्त भरा जाता है ,हर रेत धडी में 
इक तरफ़ खाली हो जब फ़िर से उलट देते हैं उसको 

उम्र जब ख़त्म हो , क्या मुझ को वो उल्टा नही सकता ?

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